नई बसावट में बरसात
पूरी रात रुक-रुककर बारिश होती रही। सुबह उठा तो लगा कि अपने आसपास की सारी धुंध धुल गई है और चीजें अपने असल चौखटे में पहुंच गई हैं। कॉलोनी का गेट पार करते ही बाईं ओर दिखी एक सत्रह मंजिला सोसायटी जिसका...
View Articleमाया को तो सब्जियों के डंठल से भी प्रेम था...
लेखिकाः सुधा अरोड़ा मुंबई में रहते हुए अड़तालीस साल होने को आए, पर आज भी मुझसे कोई कहे – ‘किसी एक शहर का नाम लो’ तो मैं बिना रुके कहूंगी – कोलकाता। कोलकाता में ही मेरी स्मृतियों के अंश भी हैं और दंश भी।...
View Articleकैसे बने जिंदगी की कसौटी?
सीधी-सादी सोच और सीधी-सादी जिंदगी। इस एक पंक्ति में उनके अब तक के पूरे जीवन का सार आ जाता है। जब जो ठीक लगा किया और उसका नतीजा झेलने को सीना ताने तैयार रहे। बचपन में बीमार पड़े तो डॉक्टरों ने जवाब दे...
View Articleबोले तो एक है महाराज और एक है मोहताज
लेखक: अवधेश व्यास ‘देखे ना बावा, उन पे इल्जाम है और वो सिरिप बदनाम हैं। उनके चेहरे पे हंसी और सुबहो-शाम आराम है, पन जो शिकार है वो गुमनाम है। जिंदगी उसकी दर्द और जखम का नाम है। शराफत पावर की गुलाम है,...
View Articleसोसायटी में नहीं दिखता समाज
लेखक: रवि पाराशर पत्नी ने सुबह-सुबह तीसरी मंजिल की बालकनी से नीचे झांक कर देखा और झल्लाई हुई लौटीं। बेटी की स्कूटी किसी ने घसीट कर सामने वाले ब्लॉक के नीचे टिका दी थी। बड़बड़ाना शुरू- अजीब लोग हैं,...
View Articleशेर सब हिचकियों से लिखता हूं
रियाज़ खैराबादी का शेर है- मुफ़लिसों की ज़िंदगी का ज़िक्र क्या, मुफ़्लिसी की मौत भी अच्छी नहीं। बदबूदार गैस से भरे, गंदे काले पानी के नर्क कुंड। देश के अलग-अलग इलाकों के ऐसे नर्क कुंडों में इंसानों का...
View Articleआनंद से भरे जीवन के लिए कुछ शर्तिया नुस्खे
क्या आप अपने जीवन को जांच-परखकर बता सकते हैं कि वह खुशहाल है या नहीं। जाहिर है, ऐसा करने के लिए आपको कुछ मानक बनाने होंगे अन्यथा आपके लिए यह तय कर पाना बहुत मुश्किल होगा कि आप असल में एक आनंदित जीवन जी...
View Articleआदर्श या उप आदर्श
एक बार आदर्श को लेकर बात हो रही थी कि किसका कौन आदर्श है। मेरे एक मित्र ने कहा कि वैसे तो मेरे आदर्श महात्मा गांधी हैं, लेकिन उप आदर्श मेरी कंपनी के मालिक हैं। मैंने पूछा, यह उप आदर्श क्या बला है?...
View Articleछंट जाएंगे अंधेरे
राजस्थान के करौली में कस्तूरबा हॉस्टल है। लड़कियों के इस हॉस्टल में कुछ दिन पहले किसी ने चुपके से कुछ छात्राओं के बाल काट लिए, जिससे छोटी बच्चियां डर गईं। लेकिन इस घटना के बाद खबर आ रही है कि स्कूल की...
View Articleवक्त की यह कैसी मार
लेखक: रौशन कुमार झा मैं करीब 8 साल का रहा होऊंगा, तभी पापा मुझे और मेरे बड़े भाई को लेकर गांव से दूर शहर आ गए थे। हम पापा के साथ जहां रहने आए वह एक लॉज था जिसमें केवल बैचलर लोग रहते थे। उसके अगल-बगल...
View Articleयहां चटनी को कहते हैं मुरब्बा
शिवांशु मिश्र कुछ साल पहले मेरे बुआ के यहां शादी थी। उनका घर बलरामपुर के एक गांव में है। योजना अनुसार सबको अलग-अलग काम सौंपे गए। हम सभी भाइयों को खाना खिलाने का काम मिला। हम लोग खाना परोसने में लग गए।...
View Articleवह एक इच्छा- कृपया बिना टिकट सफर करें और हमारी नौकरी बचाएं...
पहला इंटरएक्शन जो हुआ उनसे, उसकी याद के साथ एक तरह का अपराधबोध जुड़ा है। तब मुझे मुंबई पहुंचे और एक सांध्य दैनिक में काम शुरू किए शायद हफ्ता भी पूरा नहीं हुआ था। अस्थायी व्यवस्था के तहत मुलुंड में रहता...
View Articleये जो है जिंदगी
जब उससे मुलाकात हुई, तब तक जिंदगी को पढ़ना मैंने सीखा ही नहीं था। बस धारा के खिलाफ तैरते और इस वजह से जिंदगी की प्रतिकूलताएं झेलते लोग अच्छे लगते थे। उसने परिवार की मर्जी से अलग प्रेमविवाह किया था और...
View Articleहम तो सिर्फ मैडम सर का कहा मानेंगे
अभी कुछ दिन पहले एक नई मूवी का विज्ञापन देखा, जो जल्द रिलीज होने वाली है। नाम है सर मैडम सरपंच। इस सामाजिक व्यंग्य में विदेश से आई महिलाओं की कहानी कही गई है, जो गांव की सरपंच बनकर लौटीं। फिल्म में तो...
View Articleमैं...पालू और थार
हमारा साढ़े तीन बरस का व्योमित घड़ी-घड़ी नई फरमाइश करता है। कभी रात साढ़े तीन बजे कोई स्पेशल लॉलीपॉप चाहिए तो कभी भोर में पसंदीदा बिस्किट। कई बार अचानक टीवी या मोबाइल पर दिख गए खिलौने की डिमांड कर देता...
View Articleतब नए साल का जश्न मनाने का एकमात्र सहारा था दूरदर्शन
अक्षय शुक्ला नए साल का जश्न मनाने कोई पहाड़ों का रुख कर चुका है तो कोई दोस्तों संग किसी होटल या क्लब में पार्टी का प्लान बना रहा है। कुछ लोग दिल्ली की इस सर्द बर्फीली रात में घर पर ही रज़ाई में घुसकर...
View Articleसुबह 6 बजे से ही शुरू हो जाती थी हमारी परेड
अक्षय शुक्ला अखबार के एक आर्टिकल में डूबा था कि अचानक फाइटर जेट्स की तेज़ आवाज़ से आसमान गूंज उठा। दिन के 12 बजे का वक्त था, समझ आ गया कि 26 जनवरी की रिहर्सल शुरू हो गई है। आर्टिकल से हटकर मन अतीत की...
View Articleइस जंग में कुछ भी जायज़ नहीं
अक्षय शुक्ला रूस-यूक्रेन युद्ध को पूरे दो साल होने को हैं। जान-माल के भारी नुकसान के बावजूद इस जंग के खत्म होने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे। बल्कि इस बीच दुनिया के दूसरे कई इलाकों में नई जंग छिड़ गई...
View Articleबड़े धोखे हैं इस राह में
अक्षय शुक्ला सोशल मीडिया की एक पोस्ट ने अचानक ध्यान खींचा। मोहम्मद रफी की आवाज़ में एक गाना सुनाई दिया। ध्यान से सुना तो पता चला कि यह तो हाल में रिलीज़ हुई शाहरुख खान की फिल्म डंकी का गाना है, जिसे...
View Articleपानी को तरसता बढ़ते अरबपतियों का देश
अक्षय शुक्ला अखबार में अगल-बगल छपी दो खबरें देश की दो अलग-अलग तस्वीरें पेश कर रही थीं। एक थी मुंबई में बढ़ते अमीरों की और दूसरी बेंगलुरू समेत दक्षिण भारत के राज्यों में गहराते जल संकट की। पहले बात करते...
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